Thursday, March 25, 2010

तुम्हें समर्पित, मेरी प्रिय शुभ्रा

प्रियतम मेरी   
हो तुम कितनी न्यारी,
अनूठी अनोखी अलग मेरी 'धवला'
सबसे निराली और मुझे अत्यधिक प्यारी.

तुम्हारे चित्त की एकाग्र स्थिरता
निखार देती है तुम्हारे मन की सुन्दरता
हमेशा ही मुस्कान बनी रहे अधरों पर
जो खिला देती है तुम्हारे चेहरे की सुन्दरता.

याद हैं मुझे, तुम्हारे सभी समर्पण
जिस पर निछावर है मेरा तन मन
झाँक लो तुम मेरे ह्रदय में समझ दर्पण
पाओगी प्रिये तुम पर है मेरा सर्वस्व अर्पण.
 
चलो चलें फिर जी लें उन्ही क्षणों को
जिनसे बनी थी हमारी पहली 'दिशा'
और जिन पलों ने जिलाया था 'ऋषि' को
पूर्ण होगी उन्हीं से हमारे भवितव्य की आशा.

तुम्हारी ४५वी वर्षगाठ पर हार्दिक बधाइयाँ

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