Tuesday, November 9, 2010

विरह की वेदना

विरह की वेदना के विषय में बहुत कुछ लिखा गया है, किन्तु शेष सभी सत्तात्मक अनुभुतीओं की तरह इसे भी तभी समझा जाया जाता है, जब तक स्वयं विरह की वेदना न सहें.

कुछ दिनों पहले पत्नी भारत यात्रा पर गयी और मैं लगभग १५ दिनों तक पुत्र के साथ रहा. यह पहला अवसर था जबकि मैं अपने स्वयं के घर में पत्नी के बगैर और बच्चों के साथ था. पहले काफी बार बच्चे और पत्नी भारत यात्रा पर गए और मैं महीने भर से भी ज्यादह अकेला रहा, लेकिन तब इतनी कमी महसूस नहीं हुई. और हाँ, घर के बाहर तो अकेलापन लिए हुए मैं २०-३० दिनों तक कई बार रहता हूँ, तब मुझे ज़रा भी एकांत प्रतीति नहीं होती.

शायद यह उम्र के कारण हो या फिर अपने ही घर में बच्चे के साथ उसको सम्हालते हुए रहने से. या यह भी हो सकता है कि व्यवसाय का तनाव जीवन साथी के संग हल्का होने की चाहत बढ़ा देता हो. जैसे भी हो, इस बार कमी खली बहुत. आशा रखता हूँ कि शीघ्र ही हिम्मत बढ़ जाए और मैं एकाकीपन का आदि हो जाऊं, क्यूंकि जीवन सत्य तो वही है एवं मेरे अपनी योजनाओं में अगले सारे प्रयास अकेले के ही हैं. एकाकी पीड़ा को सहते हुए जीवन निर्बाध गति से बढ़ता जाए यही प्रयत्नशील रहने की कामना के साथ, आज बस.

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