आज बस ऐसे ही ब्लॉग लिखने का मन हुआ, हालांकि बहुत सी बातें हैं मन में. लेकिन आज बस कुछ यूँ ही.
कभी कभी हमारा मन हमें भटकाता है और कभी हम हमारे मन को. ऐसा क्यूँ होता है यह तो पता नहीं, पर होता है. बस यूँ ही.
आज अचानक लगा कि मैं बहुत बड़ा हो गया हूँ, उम्र में. ऐसे ही बाबूजी कि याद आती रही, शायद आगम के साथ होने के कारण या कुछ यूँ ही. आज अपने पिता को काफी 'मिस' कर रहा हूँ. पता नहीं क्यूँ, बस ऐसे ही और यूँ ही.
इस साल के शुरू होने से ही, यह आभाष हो रहा है कि यह मेरा पचासवां साल है, उम्र का. और इसी आभाष के चलते काफी बड़प्पन और बुजुर्गियत महसूस कर रहा हूँ, लेकिन कुछ लड़कपन, कुछ नटखटपन और मस्ती भी आ रही है. शायद यौवन के जाने की बिछुड़न, उसे और जकड कर रखना चाहती है, या मन की आंतरिक परतें बीतें हुए दिनों में न जी पाए क्षणों को जी लेना चाहतीं है. या फिर कुछ यूँ ही.
आज बस इतना ही.
3 comments:
Dineshji, this is really wonderful! I knew you are an emotional person, but this is at a much higher level.
Phirse phadhkar aisa laga ki yah to kavita hai, bhalehi aapne use 'gadya' ke rup me likha hai.
Amit, Thanks for your kind words. This will allow me to express my self some more. Although I used to think that I could express myself in English better, but when I wrote this I realized that it is my first language (childhood language) in which I could truly bring all my inner feelings and express them truly.
Thanks again.
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