प्रेम ही सब कुछ है. आज यह कहनी चरितार्थ होते हुए देखा. कल किसी वजह से पत्नी कुछ दुखी थी और इसीलिए रात में उसे बेचैनी व घबराहट हो रही थी. मैंने बस एक ही प्रण किया था कि मैं बस प्रेम ही दूंगा और किसी प्रकार का भाषण नहीं दूंगा. मैंने वैसा ही किया, और कुछ समय बाद वह बढियां घुरक घुरक कर सोई. मुझे इस बात का बहुत ही संतोष हुआ और अपनी भाषण बाज़ी के कंट्रोल पर गर्व.
सुबह खुश खुश उठने के बावजूद भी उसे अच्छा नहीं लग रहा था, इस बार मैंने फिर से रात वाला फ़ॉर्मूला अपनाया, और प्रेम के साथ भाषण बगैर बातें करता रहा, कुछ देर बाद वो और मैं दोनों अपने अपने ऑफिस चले आये.
तो एक बार फिर इस कहनी पर विश्वास हो गया कि प्रेम और धीरज से सब काम सध जातें हैं.
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